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आज जब मैं अपना पहला मज़मून लिख रहा हूँ ,ये मेरी ज़िन्दगी का पहला मज़मून है जो मैं लोगों के सामने पेश करना चाहता हूँ तो बेइख्तियार दिल कहता है की शुरुआत उस ज़ात से की जाये जो हमारी तखलीक का बाइस है,जो हमारी इब्तिदा है और इंतिहा भी है,इसी ज़ात से हमारा आग़ाज़ हुआ है और उसी पर हमारा अंजाम होने वाला है,
ऐ मेरे खालिक ! ऐ मुझे वुजूद अता करने वाले ! आप चाहे जो भी हों, हो सकता है मैंने आपको पा लिया हो और बहुत मुमकिन है हकीक़त मेरी निगाह से ओझल हो, मुमकिन है कि मैं अभी तक आपको जिन लफ़्ज़ों में तलाश रहा हूँ वो फ़क़त खोखले शजर कि मानिंद हों जिनका साया तो भरम रख लेता है पर वो हकीक़त का एक झोंका भी बर्दाश्त नहीं कर सकते,
हो सकता है मजहबों और फलसफों ने अबी इतनी तरक्की न कि हो की वो आपकी ज़ात कि तह तक पहुंचें,हो सकता है कि मैं भी कभी इस बात की हकीक़त तक न पहुँच पाऊँ की आप क्या हैं?
चाहे कुछ भी हो मेरी जिस्म का रुआं रुआं ……….मेरे अन्दर धड़कने वाली एक एक साँस आपकी ही है
ऐ मुझे अदम की tareekiyon से वुजूद की रोशनियों में लाने वाले !
“मुझे सलीका अता करिए
जीने का
जी कर जी जाने का
मेरी फ़िक्र को सीधा रास्ता दीजिये
मेरा कलम जो मेरे हाथ में है, अपनी रूहानी ताजल्लियों से उसमें सच्चाई की रूह फूँक दीजिये ,
ऐ मख्लूकात के खुदा !
आपने सब को पैदा किया है,
आप ही वहदत का निशाँ हैं
आप मुहब्बत का समन्दर हैं
अपनी मुहब्बत का एक क़तरा हम में घोल दीजिये
हम सब को एक कर दीजिये ,
मेरी ख्वाहिशात तो बहुत हैं
पर मेरी आखरी ख्वाहिश है कि
“ऐ ख्वाहिशों पर कुदरत रखने वाले खुदा
मेरी हर ख्वाहिश अपनी बरतर ख्वाहिश के मुताबिक कर दीजिये ”
aameen
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